जब से देश में नोटबंदी हो गई
सियासत और भी गंदी हो गई
हल्की हल्की सांसे ले रही है इंसानियत
सुना है मजदूर की आवाज मंदी हो गई
लंम्बी लंम्बी यह जो कातर कतारें है
बेबस चेहरे देख आह भी ठंडी हो गई
चीखकर मांग रहे हैं हिसाब गरीब का
पसीने की कमाई भी अब रद्दी हो गई
कोसती थी एक दूसरे को हर आंख
सुना है नेताऔं मे रजामंदी हो गई
क्यों ? दिखता नहीं दर्द रहनुमाओं को
लाचार को हराने सियायत अंधी हो गई
29 नव॰ 2016
28 नव॰ 2016
अंधेरा क्यों है
सोने की चिड़ीया से मुल्क में अंधेरा क्यों है
इस दौर में भी काला इतना सवेरा क्यों है
दिखती है अब हर शय में खौफ की आहट
सवेरा है मगर फिर भी घना अंधेरा क्यों है
माना की हर फैसले से वास्ता नहीं तेरा
मगर फिर भी हर फैसला तेरा क्यों है !
अजीब सवाल पूछ रह है निशब्द परिंदों से
इस दौर में बिजली के तार पर बसेरा क्यों है।
इस दौर में भी काला इतना सवेरा क्यों है
दिखती है अब हर शय में खौफ की आहट
सवेरा है मगर फिर भी घना अंधेरा क्यों है
माना की हर फैसले से वास्ता नहीं तेरा
मगर फिर भी हर फैसला तेरा क्यों है !
अजीब सवाल पूछ रह है निशब्द परिंदों से
इस दौर में बिजली के तार पर बसेरा क्यों है।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)