21 अक्तू॰ 2015

दहशत है फैली

दहशत है फैली हर शहर मोहल्ले मोहल्ले
नफरत भरी गलियां देखो इन हुक्मरानों की
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भाव चवन्नी के बिकती मजबूर काया यहाँ
बेगेरत मरती आत्मा देखो सियासतदानों की
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तिल तिल मरते कर्ज में डूबे अन्नदाता यहाँ
सुखा है दूर तलक देखो  हालत किसानों की
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धर्म की बड़ी दीवार खड़ी  है  चारों  और यहाँ
जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की
................................................................MJ
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7 टिप्‍पणियां:

  1. धर्म की बड़ी दीवार खड़ी है चारों और यहाँ
    जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की
    बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ।

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  2. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

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