8 जन॰ 2018

बूढ़ा इंतज़ार

उस टीन के छप्पर मैं
पथराई सी दो बूढी आंखें

एकटक नजरें सामने
दरवाजे को देख रही थी

चेहरे की चमक बता रही है
शायद यादों मैं खोई है

एक छोटा बिस्तर कोने में
सलीके से सजाया था

रहा नहीं गया पूछ ही लिया
अम्मा कहाँ खोई हो

थरथराते होटों से निकला
आज शायद मेरा गुल्लू आएगा

कई साल पहले कमाने गया था
बोला था "माई'' जल्द लौटूंगा

आह : .कलेजा चीर गए वो शब्द
जो उन बूढ़े होंठों से निकले।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'शुक्रवार ' १९ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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