25 दिस॰ 2018

लोटा

लोटा.....बड़ी कमाल की चीज है !! 😊
ज़्यादातर शोच और शौचालयों से इसका गहरा नाता है
गांवों में अंगुलियों के बीच दबाकर खेतों में ले जाना.
और शहरों में रेल की पटरियों पर लोटे का टकराना...
इसके अपने अलग ही फंडे है..

सदियों तक इस लोटे ने हर हालत में मनुष्य का पिछ्वाड़ा साफ करने में अहम भूमिका निभाई है....
फिर वो वक़्त आया
जब खेतों में ले जाना कम हुआ, ट्रेन कि पटरियां इस लोटे की
राह देखने लगी, क्योंकि हर जगह शौचालय बन गए
इसे शौचलय में डाला गया, ट्रेन में छोटी जंजीर से बांधा गया
कभी इसे जोर जोर से से पटका गया.....
कभी इसे इंसानी भेष में लुढ़कना पड़ा..
लेकिन इसने कभी हार नहीं मानी.. अपना काम जारी रखा
..
कहते है मेहनत का फल मिलता है...लोटे को भी मिला
आज हालात यह है की सारी सियासी पार्टियां इसी लोटे के सहारे वोट बटोरने की कोशिश कर रही है......
.....
लोटा

अहसास

शाम का वक्त था
घर के आंगन में
माहौल खुशनुमा था
सब बहुत खुश थे

आज कई अरसे बाद सारे भाई एक साथ
मां बाप के पास बैठे थे गुफ्तगू हो रही थी
गिले शिकवे होने लगे
आवाजें ऊंची होने लगी
पास बैठी मां घबरा गई
हाथ उठे..या अल्लाह.....
मेरे बेटे आपस में ना लड़ें ..
.

मदारी

डुग डुग डुग डुग डुग...
बच्चा जमूरे....
जी उस्ताद....
घूम जा...
घूम गया उस्ताद....
क्या नजर आया ..??
चुनाव नजर आया उस्ताद ..
चुनाव क्या कर रहा है ..??
वोट मांग रहा उस्ताद...
बच्चा जमूरे...
जी उस्ताद...
फिर से घूम जा...
घूम गया उस्ताद..
क्या नजर आया ??
जनता नजर आई उस्ताद...
क्या कर रही है जनता..??
नारे लगा रही उस्ताद...
बच्चा जमूरे...
जी उस्ताद...
एक बार फिर से घूम जा...
घूम गया उस्ताद..
क्या नजर आया..??
नेताजी नजर आए उस्ताद...
क्या कर रहे नेता जी ??
लंबी लंबी फेंक रहे है उस्ताद....
अबे यह तो मदारी का काम रे..
उस्ताद...मुझे लगता है यह भी हमारे जैसे मदारी ही है
अबे चुप .... ..
डुग डुग डुग डुग जमूरे....चल शुरू हो जा..
जी ..उस्ताद ...नेताजी की जय हो
अबे चुप........ मेरी रोटी खाकर उसकी जय बोलता है

माहौल ऐसा ही है उस्ताद ......

सर्द रातें

यह सर्द रातें
यह ठंडा घना कोहरा
कभी कम्बल से निकल
कुछ दूर चल
गलियों में झांक
चौराहे के उस पार
पुल के नीचे
कुछ इंसान रहते हैं

तुझे क्या पता
तुझे खबर नहीं
मजबूरी क्या है
जब तक ना पिघले
सीने में जमी बर्फ
तब तक शायद तुझे
अहसास ना होगा
दिसंबर की रातों का
...
ग़रीब की सर्दी (जमील नामा 66-18)

जद्दोजहद जारी है

ज़िन्दगी की
जद्दोजहद जारी है
आज तो गुजर गया
जैसे तैसे
कल की तैयारी है
दिन भर की थकन लेकर
लौट आए है
उस कमरे में
जहां
एक कोने में फ्रिज है
एक बड़ी सी अलमारी है
कपड़े भी धोने है
फ्रिज में सालन रखा है
ज़ायका पता नहीं
रोटियां बिकती है
खरीद लेंगे .
जल्दी सो जायेंगे
सुबह उठने के लिए
यादों के बाद
अक्सर
नीद गहरी आती है
यहां यही ज़िन्दगी है
मजबूरी है
मजदूरी है
अपनों की खातिर
जीना भी
जरूरी है

ठंड का क़हर

वो गरीब था
शायद मजदूरी के लिए
आया था शहर
कोई आसरा नहीं था
सर्द हवाओं से बचने का
मजबूरन
आग जलाकर बैठ गया !!

फिर क़हर यह हुआ की
बारिश आई और आग बुझा गई
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ठंड का क़हर (जमील नामा 72/18)

तूं कश्मीर चल

गर तुझे जानना है ज़ुल्म इंतिहा
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे दर्द का अहसास नहीं
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे जानना है बर्दाश्त की हद
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है छलनी कलेजे
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है फूलों के जनाजे
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है खौफ के साए
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है पत्थरों का रोना
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है आंसुओं का सैलाब
तूं कश्मीर चल...
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फूफा जी......😊😊

आज आपको बताएंगे फूफा जी के बारे में
देखिए ..फूफा जी एक ऐसे शख्स को कहते है जो दामाद, जीजा जी, का हसीन सफ़र पूरा कर चुका होता है...
या यूं समझ लीजिए की वो अब रिटायर्ड दामाद है और इनको सिर्फ राय मशवरे के टाइम ज़्यादा याद किया जाता है
ससुराल में किसी नए दामाद का उदय होने के बाद इनका
सिक्का लगातार गिरता रहता है.और इनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है 😊
शादियों में इनकी बड़ी अहमियत होती है
रिश्तेदार को मनाना हो, खाने के क्या बनाना है, या टेंट कैसे लगाने है, ऐसे कामों के लिए इनकी राय लेना बहुत जरूरी होता है....
खासकर रिश्तेदारों को मनाने में इनका अहम रोल होता है
लेकिन अगर यह खुद रूठ जाए तो इनको मनाने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ते है 😊 फिर जैसे तैसे मान भी गए
तो शादी में इनका खास ख्याल रखा जाता है..
कुछ फूफा खड़ूस होते है..
पीछे हाथ बांध कर ऐसे ऑर्डर फेंकते है जैसे किसी सलतनत के महाराज हो...हुक्म मानना भी पड़ता है गुजरे वक़्त के जीजाजी जो ठहरे..वक़्त ने अब इनको फूफा जी बना दिया है
कुछ फूफा बहुत शालीन होते
जहां कुर्सी लगा दी बैठ जाते है अकेले घंटों बैठे रहेंगे
मजाल है वहां से उठ जाए 😊आखिर में जब बारात आ जाती है तो इनको मिठाई वाले रूम में बिठा दिया जाता है .
कुछ फूफा अलग ही किस्म के होते है
इनका लेवल अलग ही होता है बच्चों से हंसी मजाक करते करते इनकी नज़रें हर कोने को ताक रही होती है, यह सुनते कम सुनाते ज़्यादा है 😂..
कुल मिलाकर फूफा जी चाहे जैसा भी हो उनका
मान सम्मान करना हमारी परम्परा है....
इसलिए कमेंट में दो शब्द कहकर सभी फूफाओं का सम्मान बढ़ाएं 😊

अलाव

ठंडी सर्द हवाएं
जलता अलाव
उसके इर्द गिर्द
यारों का जमघट
मोबाइल चुरा ले गया वो दिन..

बुझे हुए अलाव से
राख के ढेर को
खुरच खुरच
चिंगारी ढूढना
मोबाइल चुरा ले गया वो दिन..

रोज शाम ढले
मांगकर लकड़ियां
उसी अलाव पर
फिर अलाव जलाना
मोबाइल चुरा ले गया वो दिन..
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