24 नव॰ 2015

भारत आगे बढ़ रहा है

जहाँ हर कोई बिन बात के आपस में लड़ रहा है
नफरत है शहर शहर किसान भी सूली चढ़ रहा है
*फिर कैसे कह दूँ भारत आगे बढ़ रहा है


जहाँ एक तरफ भूख से बेहाल तरसते गरीब देखो
एक तरफ अनाज सरकारी गोदामों में सड़ रहा है
*फिर कैसे कह दूँ भारत आगे बढ़ रहा है


भूल गए इंसानियत धर्म मजहब पर हाहाकार देखो
कोई सुरक्षित नहीं भार महंगाई का जो पड़ रहा है
*फिर कैसे कह दूँ भारत आगे बढ़ रहा

15 नव॰ 2015

राष्ट्रपति के नाम एक पत्र

 महामहिम राष्ट्रपति जी आज जो अराजकता या असहिष्णुता फैली हुई है उसके बारे में

कुछ तो बोलिए जनाब ?

आज हमारा भारत सामाजिक विकास के महत्वपूर्ण मानदंडों पर पिछड़ता जा रहा है,

ऐसी स्थिति हमारे लोकतन्त्र के लिए खतरनाक है....यह आप भी बखूबी जानते है

जनाब ,लोकतन्त्र में जनता के भरोसे का खुलेआम मज़ाक बनाया जा रहा है ..

हमारे देश की गरीबी और पिछड़ेपन को विश्वभर में एक बाकायदा मंच लगाकर सुनाया जा रहा है

में पूछना चाहुगा जनाब क्या इस देश ने पिछले 60 सालों में यही पाया है

गरीबी और विकास के बारे मैं कोई बात नहीं हो रही ..बात होती है सिर्फ धर्म और जाती की

कुछ भद्रजन इसको बखूबी  अंजाम दे रहे है ..

महामहिम आप ही ने कहा था अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती

लेकिन आज धर्म के नाम साध्वी प्राची, आदित्यनाथ जेसे कुछ जो हर धर्म में मोजूद है

जो धर्म के नाम पर नफरत का जहर उगल रहे है यह अराजकता नहीं तो और क्या है 

कुछ कीजिये महाराज .....इनसे रोकिये यह के लिए बड़ा खतरा है ....

आज कही किसी को कुछ खाने पर मार दिया जाता है

कही किसी को देश से निकालने की बात की जा रही है

किसान की हालत जस से तस है गरीब और लाचार होता जा रहा है

कुछ कीजिये जनाब इससे पहले की कोई आप पर भी ऊँगली उठाये ..

अपने संवैधानिक सीमा में रहकर ही सही पर इतना तो कर दीजिये जनाब .............


                     गणतन्त्र का नागरिक

2 नव॰ 2015

वक़्त

ना  जाने कब कैसे वक़्त बे साख्ता उड़ा
जैसे पंख फैलाये आसमां में फाख्ता उड़ा

मिट गयी ना जाने कैसी कैसी  हस्तियां
जब  जब जिससे भी इसका वास्ता पड़ा

बदलने चले थे कई सिकंदर और कलंदर
ख़ाक हुए जिसकी राह मैं यह रास्ता पड़ा

मत कर गुरूर अपनी हस्ती पर ऐ "जमील ''
कुछ पल उसे देदे सामने जो फ़कीर खड़ा