25 दिस॰ 2018

लोटा

लोटा.....बड़ी कमाल की चीज है !! 😊
ज़्यादातर शोच और शौचालयों से इसका गहरा नाता है
गांवों में अंगुलियों के बीच दबाकर खेतों में ले जाना.
और शहरों में रेल की पटरियों पर लोटे का टकराना...
इसके अपने अलग ही फंडे है..

सदियों तक इस लोटे ने हर हालत में मनुष्य का पिछ्वाड़ा साफ करने में अहम भूमिका निभाई है....
फिर वो वक़्त आया
जब खेतों में ले जाना कम हुआ, ट्रेन कि पटरियां इस लोटे की
राह देखने लगी, क्योंकि हर जगह शौचालय बन गए
इसे शौचलय में डाला गया, ट्रेन में छोटी जंजीर से बांधा गया
कभी इसे जोर जोर से से पटका गया.....
कभी इसे इंसानी भेष में लुढ़कना पड़ा..
लेकिन इसने कभी हार नहीं मानी.. अपना काम जारी रखा
..
कहते है मेहनत का फल मिलता है...लोटे को भी मिला
आज हालात यह है की सारी सियासी पार्टियां इसी लोटे के सहारे वोट बटोरने की कोशिश कर रही है......
.....
लोटा

अहसास

शाम का वक्त था
घर के आंगन में
माहौल खुशनुमा था
सब बहुत खुश थे

आज कई अरसे बाद सारे भाई एक साथ
मां बाप के पास बैठे थे गुफ्तगू हो रही थी
गिले शिकवे होने लगे
आवाजें ऊंची होने लगी
पास बैठी मां घबरा गई
हाथ उठे..या अल्लाह.....
मेरे बेटे आपस में ना लड़ें ..
.

मदारी

डुग डुग डुग डुग डुग...
बच्चा जमूरे....
जी उस्ताद....
घूम जा...
घूम गया उस्ताद....
क्या नजर आया ..??
चुनाव नजर आया उस्ताद ..
चुनाव क्या कर रहा है ..??
वोट मांग रहा उस्ताद...
बच्चा जमूरे...
जी उस्ताद...
फिर से घूम जा...
घूम गया उस्ताद..
क्या नजर आया ??
जनता नजर आई उस्ताद...
क्या कर रही है जनता..??
नारे लगा रही उस्ताद...
बच्चा जमूरे...
जी उस्ताद...
एक बार फिर से घूम जा...
घूम गया उस्ताद..
क्या नजर आया..??
नेताजी नजर आए उस्ताद...
क्या कर रहे नेता जी ??
लंबी लंबी फेंक रहे है उस्ताद....
अबे यह तो मदारी का काम रे..
उस्ताद...मुझे लगता है यह भी हमारे जैसे मदारी ही है
अबे चुप .... ..
डुग डुग डुग डुग जमूरे....चल शुरू हो जा..
जी ..उस्ताद ...नेताजी की जय हो
अबे चुप........ मेरी रोटी खाकर उसकी जय बोलता है

माहौल ऐसा ही है उस्ताद ......

सर्द रातें

यह सर्द रातें
यह ठंडा घना कोहरा
कभी कम्बल से निकल
कुछ दूर चल
गलियों में झांक
चौराहे के उस पार
पुल के नीचे
कुछ इंसान रहते हैं

तुझे क्या पता
तुझे खबर नहीं
मजबूरी क्या है
जब तक ना पिघले
सीने में जमी बर्फ
तब तक शायद तुझे
अहसास ना होगा
दिसंबर की रातों का
...
ग़रीब की सर्दी (जमील नामा 66-18)

जद्दोजहद जारी है

ज़िन्दगी की
जद्दोजहद जारी है
आज तो गुजर गया
जैसे तैसे
कल की तैयारी है
दिन भर की थकन लेकर
लौट आए है
उस कमरे में
जहां
एक कोने में फ्रिज है
एक बड़ी सी अलमारी है
कपड़े भी धोने है
फ्रिज में सालन रखा है
ज़ायका पता नहीं
रोटियां बिकती है
खरीद लेंगे .
जल्दी सो जायेंगे
सुबह उठने के लिए
यादों के बाद
अक्सर
नीद गहरी आती है
यहां यही ज़िन्दगी है
मजबूरी है
मजदूरी है
अपनों की खातिर
जीना भी
जरूरी है

ठंड का क़हर

वो गरीब था
शायद मजदूरी के लिए
आया था शहर
कोई आसरा नहीं था
सर्द हवाओं से बचने का
मजबूरन
आग जलाकर बैठ गया !!

फिर क़हर यह हुआ की
बारिश आई और आग बुझा गई
______
ठंड का क़हर (जमील नामा 72/18)

तूं कश्मीर चल

गर तुझे जानना है ज़ुल्म इंतिहा
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे दर्द का अहसास नहीं
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे जानना है बर्दाश्त की हद
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है छलनी कलेजे
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है फूलों के जनाजे
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है खौफ के साए
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है पत्थरों का रोना
तूं कश्मीर चल...
गर तुझे देखना है आंसुओं का सैलाब
तूं कश्मीर चल...
____________________________

फूफा जी......😊😊

आज आपको बताएंगे फूफा जी के बारे में
देखिए ..फूफा जी एक ऐसे शख्स को कहते है जो दामाद, जीजा जी, का हसीन सफ़र पूरा कर चुका होता है...
या यूं समझ लीजिए की वो अब रिटायर्ड दामाद है और इनको सिर्फ राय मशवरे के टाइम ज़्यादा याद किया जाता है
ससुराल में किसी नए दामाद का उदय होने के बाद इनका
सिक्का लगातार गिरता रहता है.और इनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है 😊
शादियों में इनकी बड़ी अहमियत होती है
रिश्तेदार को मनाना हो, खाने के क्या बनाना है, या टेंट कैसे लगाने है, ऐसे कामों के लिए इनकी राय लेना बहुत जरूरी होता है....
खासकर रिश्तेदारों को मनाने में इनका अहम रोल होता है
लेकिन अगर यह खुद रूठ जाए तो इनको मनाने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ते है 😊 फिर जैसे तैसे मान भी गए
तो शादी में इनका खास ख्याल रखा जाता है..
कुछ फूफा खड़ूस होते है..
पीछे हाथ बांध कर ऐसे ऑर्डर फेंकते है जैसे किसी सलतनत के महाराज हो...हुक्म मानना भी पड़ता है गुजरे वक़्त के जीजाजी जो ठहरे..वक़्त ने अब इनको फूफा जी बना दिया है
कुछ फूफा बहुत शालीन होते
जहां कुर्सी लगा दी बैठ जाते है अकेले घंटों बैठे रहेंगे
मजाल है वहां से उठ जाए 😊आखिर में जब बारात आ जाती है तो इनको मिठाई वाले रूम में बिठा दिया जाता है .
कुछ फूफा अलग ही किस्म के होते है
इनका लेवल अलग ही होता है बच्चों से हंसी मजाक करते करते इनकी नज़रें हर कोने को ताक रही होती है, यह सुनते कम सुनाते ज़्यादा है 😂..
कुल मिलाकर फूफा जी चाहे जैसा भी हो उनका
मान सम्मान करना हमारी परम्परा है....
इसलिए कमेंट में दो शब्द कहकर सभी फूफाओं का सम्मान बढ़ाएं 😊

अलाव

ठंडी सर्द हवाएं
जलता अलाव
उसके इर्द गिर्द
यारों का जमघट
मोबाइल चुरा ले गया वो दिन..

बुझे हुए अलाव से
राख के ढेर को
खुरच खुरच
चिंगारी ढूढना
मोबाइल चुरा ले गया वो दिन..

रोज शाम ढले
मांगकर लकड़ियां
उसी अलाव पर
फिर अलाव जलाना
मोबाइल चुरा ले गया वो दिन..
............................................

10 अक्तू॰ 2018

चुनाव रो टेम है

बांधा ला जीत रो सेहरो
जोरको चुनाव रो टेम है...
म्हारी बात गांठ बांधल्यो
लोगां न बस ओ ही बेम है..


म्हे ही अठे का चोधरी
बरसां बरस करां ला राज..
बतावे तो डूंगर का डूंगर
ढेला को करयो ना काज..

पहन लिया धोऴा कुर्ता
पगा में चरचराती मोजड़ी
जद निकऴ्यो राज रो घमंड है
पचे तो लागे जियां रोजड़ी

पकड़ कर नेता जी रो पल्लो
लोग बाग मजा काट रिया है
आज है काल रो काईं भरोसो
लपक लपक कर चाट रिया है

महे ही नेताजी रा लंगोटिया
गोडां सूधो है म्हारो राज
संभऴ ज्यो रे बावऴी बूंचो
बे थारा काल हुया ना ही आज
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17 सित॰ 2018

बेचारा Nimbuzz..

बात शायद 2008 की बात है जब मार्केट में एक भगवा रंग का मैसेंजर आया था " Nimbuzz "
और आते ही धमाल मचा दिया था खासकर खाड़ी देशों में
उस वक़्त फेसबुक भी 4 साल का हो गया था लेकिन
FB का इतना क्रेज नहीं था जितना Nimbuzz का था

उसके क्रेज का अंदाजा इसी से लगा सकते है कि आज भी
कई फेसबुक प्रोफ़ाइल पर working at nimbuz लिखा दिख जाएगा .. 

यह तो ठीक है कि आज यह ज़िंदा नहीं है
वरना इसके भगवा कलर की वजह से इसे भी धार्मिक रंग दे दिया जाता ...... बोलो Nimbuzz बाबा की जय..

बड़ी कमाल की चीज थी
खाड़ी देशों में यह बड़ी टाइमपास की चीज थी क्योंकि इसमें भी ग्रुप हुआ करते थे..कनेक्टिविटी का बेहतरीन साधन बन चुका था ...... तेरी nimbuzz आईडी बता जल्दी से

इसमें भी वॉट्सएप की तरह लात मारके ग्रुप से बाहर निकाल दिया जाता था. बिना वार्निंग के......
और कई गफूर भाइयों ने पिंकी बनके लोगों को चम्पू बनाने का हुनर भी यहीं से सीखा था..

इसके लिए मार्केट में bamboo जैसे सॉफ्टवेयर भी आए थे जो सामने वाले के मोबाइल को डांस करवा देते थे...

वो कहते हैं ना वक़्त के थपेड़े किसी को नहीं छोड़ते
वक़्त ने इसका भी वही हश्र किया 
वॉट्सएप और फेसबुक की आंधी में बेचारा Nimbuzz  गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गया..

लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं  इतिहास के पन्नों में इसका नाम भगवा अक्षरों में लिखा जाएगा.....

15 अग॰ 2018

ले नाच

बच्ची / बच्चा स्कूल से घर आते है मम्मी पापा को बताते है कि
मुझे 15 अगस्त पर "ले नाच" गाने पर नाचने का टास्क मिला है

मम्मी खुश पापा खुश .. शिक्षा गई भाड़ में

ठीक है सही से नाचना ध्यान रखना कहीं चोट ना लग जाए
हम भी आ रहे है देखने फर्स्ट इनाम मिलना चाहिए...

गलती किसकी है स्कूल की या पेरेंट्स की ?

देखिए ...
स्कूल अपने फायदे के लिए भीड़ इकट्ठा करने के लिए
आजादी के मौके पार इस तरह के बेहूदा प्रोग्राम करवाते है
लेकिन असल गलती हमारी है
पेरेंट्स ही बच्चे को नाचने के लिए प्रोत्साहित करते है
जब पता है कि स्कूल ने बच्चे को नाचने का टास्क दिया है
फिर भी हम स्कूल में जाकर इस बारे में शिकायत करने की जहमत नहीं उठाते ..
स्कूल किसी भी बच्चे को ज़बरदस्ती नाचने पर मजबूर नहीं करता...
उनका मकसद भीड़ होती है जो इस तरह के टास्क को देखने आसानी से अा जाती है....
आज़ादी का जश्न जो है

31 जुल॰ 2018

फेसबुक वाली दुनियां

जहां हर तरह की इंसानी मखलूक पाई जाती है
यह वो तिलिस्मी जगह है जहां कोई कुछ भी बन सकता है

गधा शेर बन जाता है ...वो अलग बात है वो ढेंचू ढेंचू करने   पर जल्द ही पहचान लिया जाता

नर .. मादा बनकर ख्वाबों को कीबोर्ड पर ढालने की कोशिश करता है,

सारे गांव के बच्चों से मार खाने वाला "डेशिंग बॉय" बना हुआ है स्टेटस लिखेगा ...
" जिस गली से गुजरते है लोग खिड़कियां बंद कर लेते है "
हालाकि बाद में कोई बताता है कि कल पापा की उड़ती हुई चप्पल कान के नीचे बजी थी,

सुबह सारे मोहल्ले का गोबर उठाने वाली पापा की परी बनी हुई है .. शाम को स्टेटस देखिए ..Going to Shoping...

कुछ प्रिंसेस भी होती है .एक खूबसूरत DP के साथ
पोस्ट लिखेंगी ... " हेलो दोस्तो आज कैसी लग रही हूं "
इनकी पोस्ट पर हजारों लाखों की तादाद में लाइक कॉमेंट मिलेगे अक्सर ऐसी आईडी के पीछे किसी गफूर भाई का हाथ होता है

कुछ युवा नेता भी है ..
यह प्रोफ़ाइल फोटो में नेता जी के बगल में खड़े है
फोटो देख कर ऐसा लगेगा जैसे सारी हुकूमत का दारोमदार इन्हीं के कंधो पर है....इनकी अहम ज़िम्मेदारी यह होती है कि
नेता जी के जन्मदिन या किसी भी प्रोग्राम का दावत नामा सारे शहर में फैला दे ... डिजाइन दार

कुछ प्रिंस भी है ....
ऊपर आसमान में मुंह करके सेल्फी लेंगे जैसे कि फूंक मारकर आसमान को धकेल देगा, फिर वही सेल्फी अपलोड करके लिखेंगे ..
"हैसियत की बात मत करो हम मच्छर भी Ak 47 से मारते है"
हालाकि फायर होने पर मेरी तरह झटका भी सहन नहीं कर सकते ...

आखिर में मुझ जैसे लोग...
जो दिन में दो चार पोस्ट करने के बाद पतली गली से निकल जाते है, फिर दूर खड़े  होकर तमाशा देखते रहते है 😋


20 जुल॰ 2018

कालिया की साईकिल

काळ्यो कूद पड्यो मेऴे में -साईकल पंक्चर कर ल्यायो

यहां पर पहली बात तो यह देखना है की वो मेला कोनसा था
जिसमें  कालिया बिना सोचे समझे ही कूद पड़ा..

अगर यह मिर्धा पार्क में हर चार महीने बाद लगने वाला मेला है तो जब शहर में इतनी शानदार और चमकती रोड़ें बनी हुई है
फिर भी उसकी साईकल पंचर कैसे हो गई ?
या कालिया किसी विरोधी पार्टी का था इसलिए साजिश के तहत उसकी साईकल पंचर कर दी गई...

गाना आगे चलता है ......
"दो दिन ढब जा रे डोकरिया- छोरी म्हारी बाजरियो काढ़े.."

यहां पर गाना किसी और ही एंगल पर चला गया है
यहां गाने के हिसाब से खेतों में बाजरी की फसल पक चुकी है फसल की कटाई का काम चल रहा है..लड़की घरवालों की मदद कर रही है ... यहां यह भी पता चलता है कालिया की सास उसे प्यार से डोकरिया नाम से बुलाती है,😉

आगे है ..
"के बाजा बाज रिया डूंगर में - छोरी तने लेबाऴो आयो.."

यहां ऐसा लाग रहा है कालिया कोई रंगीला किस्म का लड़का है गाजे बाजे यानी DJ के साथ अा रहा है..
ओर जो पीर पहाड़ी (डूंगर) को चीरती हुई रिंग रोड़ निकली है कालिया उसी की और से अा रहा है DJ के आवाज गूंज रही है डूंगर में .. और दूर दूर तक सुनाई दे रही है

चलिए आगे सुनते है....
"जयपुर जाजे कब्जो ल्याजे - कब्जो लाल बूटी को.."

इसका मतलब यह हुआ है यह जो लाल बूंटी का मांग रही है
वो सिर्फ जयपुर में ही मिलता है, अपने शहर में नहीं मिलता
या फिर डीडवाना में मिलता तो है लेकिन छोरी को वो पसंद नहीं है...

आगे चलिए...
"छोरी चटक मटक मत चाले - कमर में लचको पड़ ज्यागो.. "

यहां सीधा सा मतलब यह कि अगर ज़्यादा टेढ़े मेढे चलोगे तो
कमर में दर्द हो जाएगा,और फिर आपको बांगड़ हॉस्पिटल में डॉक्टर को दिखाने जाना पड़ेगा और डॉक्टर का कोई भरोसा नहीं वो टाइम पर मिलेगा या नहीं..हो सकता है छुट्टी पर हो
 फिर बड़ी मुश्किल हो जाएगी..

थोड़ा आगे सुनते है
" छोरी छपरा में लुक ज्या ये - तन्नेे लेवणियों आयो.. "

अब यहां गाना अपनी संस्कृति में वापस लौट आया है, यानी कि जब लड़की के ससुराल से कोई आता है तो
लड़की ससुराल वाले के मान सम्मान की खातिर सामने नहीं आती राजस्थान के गांवों में अक्सर ऐसा होता है...
यहां यह भी पता चलता है कि लड़की का परिवार गरीब है और विकास अभी उनके यहां नहीं पहुंचा है
इसीलिए तो लड़की की मां उसे छपरे में छिपने को बोल रही है कमरे में छिपने के लिए भी तो कह सकती थी

काळ्यो कूद पड्यो मेऴे में - साईकल पंक्चर कर ल्यायो

अंत में कुल मिलाकर गाने का यह मतलब निकलता है की
कालिया एक बेरोजगार और गरीब लड़का है किराए की गाड़ी नहीं ला सकता, पेट्रोल महंगा है किसी की मोटर साईकिल भी मांग कर नहीं ला सकता ...इसलिए वो
अपनी साइकिल पर शहर में लगा मेला देखता हुआ आया है और वहां पर किसी ने उसकी साइकिल की हवा निकाल दी ..

ओर उसकी सास ने सिर्फ अपने दामाद की बड़ाई के लिए इतना ड्रामा रचा है.....
____________________________________________

16 जून 2018

राणा जी माफ करना


सालों पहले आई फिल्म "करन अर्जुन" का कहीं से सामने अा गया, लिखने को कुछ था नहीं तो सोचा चलो इस गाने का ही पोस्टमार्टम करते है..😂😁

गाना है ......
"छत पे सोया था बहनोई, में तने समझ के सो गई,
मुझको राणा जी माफ करना गलती म्हारे से हो गई,"
यहां गाने के हिसाब से गर्मी का मौसम था,

और उस गांव में बिजली नहीं थी या बार बार काटी जा रही थी
मतलब तब भी बिजली का हाल आज की तरह ही था, इसलिए बहनोई को छत पे सुलाया गया था, अगर बिजली सही तरीके से रहती तो बहनोई को कूलर वाले कमरे में सुलाते  😁

गाना आगे बढ़ता है......
"बहनोई ने ओढ़ रखी थी चादर, में समझी पिया का है बिस्तर,
आधे बिस्तर पे वो साया था, आधे पे में सो गई
मुझको राणा जी माफ करना गलती म्हारे से हो गई,"

यहां पता चलता है कि उसका बहनोई कोई बकलोल किस्म का आदमी था, क्योंकि उसने इतनी गर्मी में भी चादर ओढ़ रखी थी और वो सिकुड़ कर आधे बिस्तर पर सोया था,
पूरे बिस्तर पर आराम से फैल कर भी तो सो सकता था,😁

चलिए गाना आगे बढ़ाते है ......
"भूल हुई मुझसे कैसा अचम्भा,बहनोई था पिया जितना लंबा
चूर थी में दिनभर की थकन से, पड़ते ही बिस्तर पे सो गई
मुझको राणा जी माफ करना गलती म्हारे से हो गई "

यहां पता चलता है कि उसके पिया का नाम राणा जी है
जिससे यह बार बार माफी मांग रही थी,और वो अच्छा खासा लंबा भी है, अगर छोटे कद का होता तो लंबा नहीं बताती,
और हां इसमें अचम्भे वाली कोई बात नहीं है
क्योंकि उसका पिया "अंधभक्त"  किस्म का निकम्मा और नेताओ के आगे पीछे घूमने वाला आदमी है कोई काम धंधा नहीं करता, अगर वो काम करता होता तो यह दिन भर में इतनी नहीं थकती की बिस्तर का भी होश नहीं रहा,😊😊

पूरे गाने में खास बात यह है कि यह सारी बातें बहनोई चुपचाप सुन रहा था, उसने कोई भी सफाई पेश नहीं की,
इसलिए मैने पहले भी कहा है कि उसका बहनोई भी कोई बकलोल किस्म का आदमी था 😁😀

खैर अपना क्या है उसका बहनोई जाने और उसका पिया
अपने को तो बस लिखना था लिख दिया 😉😉 .
....

14 जून 2018

परदेस में चांद रात

कल यहां भी "ईद" है परदेस में... !!!

शायद दाना हमारे नसीब का

रब ने यूं बखेरा है परदेस में

चुन रहे है तिनका तिनका

वो सब अपनों की ईदी है

कल यहां भी "ईद" है परदेस में.... !!!

यहां चांद कौन देखता है भला

बस तुम्हारी तरह यहां भी कल ईद है

सुबह का बचा खाना खा कर लेता हूं

कमरा बिखरा है दुरुस्त करना है

कल साथी मिलने आयेंगे "शायद"

कल यहां भी "ईद"है परदेस में..... !!!

नींद तो कब की फाख्ता हो गई

मुझे कल के बर्तन भी धोने है

अलार्म लगा कर सो जाऊंगा

मम्मी ना जगाएगी यहां परदेस में

कल यहां भी "ईद"  है परदेस में....!!!

गर वक़्त पर जागा तो "जमील"

कल वहीं कपड़े पहन लूंगा

जो इस्त्री करके रखे है मैने

फ़िक्र है अपनी की ईद चांद हो जाए

बस यही तो हमारी ईदी है

कल यहां भी "ईद" है परदेस में....!!!☹️
____________________________

11 जून 2018

गांव के बूढ़े बाबे

कच्चे घरों में पक्के रिश्ते होते थे
तब यह गांव वाले कितने मीठे होते थे ..

अब मोटी दीवारें हैं घर घर के बीच में
पहले तो हर आंगन रिश्ते नाते होते थे

अब कौन सुनाए चबूतरे पर कहानियां ,
वहां पहले तो कुछ बूढ़े बाबे होते थे

सिर्फ यादें है उस नुक्कड़ की "जमील"
जिस नुक्कड़ पर चाय के ढाबे होते थे

वो डमरू वाला आता था खेल दिखाने
जब मोबाइल जैसे ना कोई तमाशे होते थे 

फुर्सत मिले तो जीने की कोशिश करना
वो पल जब अपनों संग ठहाके होते थे
.


10 जून 2018

चलो बांधते है बिल्ली के गले में घंटी


आपने वो कहानी तो सुनी ही होगी 😇
अरे वही बहुत सारे चूहे मिलकर बिल्ली के गले में घंटी बांधने के लिए मीटिंग करते है ..आखिर में बात वहां अटक गई कि गले में घंटी बांधेगा कौन, और कैसे 🤔..
.
चलिए.. अब बांधते है उसी बिल्ली के गले में घंटी 🔔
कहानी टेक्नोलॉजी के ज़माने में अा चुकी है 💻
चूहे🐀 भी वही है, बिल्ली🐈 भी वही हैं, हां बस वो थोड़ी नेता टाइप की हो गई है.. उसके गले में भगवा रंग का गमछा भी है,
सब चूहों को वॉट्सएप कर दिया गया है
सोशल मीडिया का काम..मेरे जैसे कुछ सोशल मीडिया पर एक्टिव चूहों को सौंपा गया है ,
धड़ा धड स्टेटस लिखे जा रहे है डिजाइनदार पोस्ट बना कर
इनबॉक्स में चिपकाए जा रहे है,
टैग लाइन है   "अच्छे दिन आयेंगे,  गले में घंटी बांधेंगे 🔔 "
अब वो घड़ी भी आ गई जब बिल्ली के गले में घंटी बांधने
का फैसला होगा,दूर दूर से चूहे आए है
सबके हाथ में स्मार्टफोन है📱, कुछ बड़े नाम वाले चूहे भी है
और पिछलग्गू चूहे भी आए है,
सेल्फियां खींची जा रही है कुछ ने तो मीटिंग को लाइव भी कर दिया है
लीडर टाइप का चूहा स्टेज पर खड़ा होकर बोलता है
मित्रों.......🔊🔊
अब वो वक़्त अा गया है जब हमें इन बिल्लियों को सबक सिखाना होगा, हम सदियों से इनके जुल्मों के शिकार है
सब अपने अपने आइडिये. "चूहा गैंग" पेज पर शेयर करें
सबने आइडिए शेयर करना शुरू कर दिए
किसी का आइडिया बेहतरीन है और किसी ने तो बस दूसरे का कॉपी करके चिपका दिया है
आखिर में लीडर टाइप चूहे ने फैसला सुनाया
मित्रों....🔊🔊
सबके आइडिया में से हमने एक बेहतरीन  आइडिया निकाला है
की पहले हम मेडिकल की दुकान पर जाएंगे और वहां से
बेहोशी की दवा लेकर आयेंगे उस बिल्ली के दूध में मिला देंगे
जब वो बेहोश हो जाएगी तब चार पांच पहलवान चूहे जाकर उसके गले में घंटी बांध देंगे !!!!
इतना सुनते ही सारे चूहे खुशी से झूम उठे, नाचने  गाने लगे
चारों तरफ शोर मचने लगा ..🎷🎼🎼 ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद
"गले में घंटी बांधेंगे अच्छे दिन आयेंगे" .......
लेकिन वो यह भूल गए कि इनमें भी लोटा टाइप का चूहा भी है
जिसका काम ही दलाली करना है, 
वो जाकर बिल्ली को सब कुछ बता देगा, बिल्ली फिर सतर्क हो जाएगी...........कहानी ऐसे ही चलती रहेगी ...😊😊
 

8 जून 2018

अच्छे दिन की डायरी...

इतना कुछ लिखा जा चुका है या लिखा जा रहा है,

आने वाले वक़्त में जब इतिहासकार लिखने बैठेगा तो    लिखने के लिए उसके पास कुछ नहीं होगा

जब वो
कुछ देश के बारे में लिखने की सोचेगा  !!!

लेकिन क्या लिखना है उसे भी नही मालूम जो वो सोच रहा है     वो सब लिखा जा चुका है और इतिहास बन चुका है

फिर वो
इंसानियत के बारे में लिखने की सोचेगा !!!

लेकिन किसकी इंसानियत के बारे में लिखे , जो लोग इंसानियत दिखा रहे थे, कईयों ने शाम को घर में बूढ़े मां बाप से बदतमीजी की है,

शिक्षा, समाज , परिवार, दोस्त, रिश्तेदार , सबके बारे में उसने सोचा लेकिन जो वो सोच रहा है वो सब लिखा जा चुका है और पढ़ा जा चुका है

अब वो
हैरान परेशान होकर अपने क़लम को फेंकने ही वाला था कि
अचानक से मुस्कुराया 

आइडिया !!
उसने सोशल मीडिया खोला कहीं से एक दो किलोमीटर लंबी पोस्ट कॉपी की ओर इतिहास लिखने वाली डायरी में चिपका देगा..
उसे यह भी पता है कि यह नसीहत भरी पोस्ट उससे पहले भी
कई बार लिखी और पढ़ी जा चुकी है,....

लेकिन सुकून है
वो लिख चुका है उसे पोस्ट खत्म करनी है,
अब वो सिर्फ यह एक बात लिखकर इतिहास की डायरी बंद कर देगा कि " अच्छे दिन आयेंगे " ......

18 अप्रैल 2018

चिड़ियों के पर ना काटो

वो कश्मीर की वादियां
वो लहूलुहान परिंदे
वो खंडहर से घरौंदे  
सब एक सुर में बोल पड़े

कुछ पंछी पराए है
कुछ अपने हमसाये हैं
ख़ामोश लब खोल पड़े
सब एक सुर में बोल पड़े

चिड़ियों के पर ना काटो
मजहब में इनको ना बांटो
उड़ने दो इनको आसमान में
फेलाने दो अमन हिंदुस्तान में

सब एक सुर में बोल पड़े

17 अप्रैल 2018

तमाशा है चैनल चैनल देखे जा

आप न्यूज़ देखते है
देखिएगा जरूर देखिएगा और चैनल बदल बदल कर देखिएगा
आपको अहसास होगा की जो दिखाया जा रहा है वो सही है और आप उस पर यकीन करने की कोशिश करेंगे उसके नीचे जो कमेंट आ रहे है वो आपको यकीन करने पर मजबूर कर देंगे
लेकिन...
जैसे ही चैनल बदल कर दूसरे चैनल पर आएंगे तो
आपको कुछ अलग ही महसूस होगा यहाँ पर खास गिरोह के द्वारा आपको अहसास दिलाया जायेगा की जो कुछ पहले देखा था वो गलत था सच्चाई तो यहाँ है

और फिर आप उसको सोशल मीडिया पर शेयर करेंगे
आपकी नजर कुछ सोशल मीडिया की पोस्टों पर पड़ेगी तो आपका दिमाग सुन्न रह जायेगा
की जो आपने  टीवी चैनलों पर देखा सच्चाई उनसे भी अलग है,

क्या सच है क्या गलत.. क्या देखना चाहिए और किस पर यकीन
इसी कश्मकश में आप गाड़ी लेकर बाजार की तरफ निकल पड़ेंगे
गाड़ी में पेट्रोल भी कम है,
खरीदारी करते वक़्त आपको असली मुद्दे याद आएंगे की कैसे एक पूरी लॉबी आपके पीछे लगी है जो आपको सिर्फ घर्म और असली नकली ख़बरों के बीच उलझाए रखना चाहती है

14 अप्रैल 2018

हिन्दुस्तानी रूह

स्वर्ग में उस वक़्त कोहराम मच गया जब
एक 8साल की खून से लथपथ "आसिफा" नाम की रूह दाखिल हुई .....हाहाकार मच गया ..
हिन्दुस्तानी रूह थी इसलिए वहां पर पहले से मौजूद
"निर्भया" नामी रूह ने पहचान लिया और बोली

निर्भया : छुटकी क्या हुआ किसने किया यह हाल
आसिफा : आपा एक हफ्ते से भूखी प्यासी हूं कुछ खिला पिला दो. ...
निर्भया समझ चुकी थी कि यह भी किसी दरिंदों का शिकार बन चुकी है शायद...दिलासा दिया और बोली
छुटकी अब फिक्र ना कर अब तूं दुनिया जैसे नरक से निकल कर यहां आ चुकी है अब तुझे यहां कोई तकलीफ़ नही होगी
यहां में हूं और भी बहुत सी सहेलियां है जो दुनिया जैसे नर्क से आई है
वो देख वहां पर पाकिस्तान से आई "जैनब" भी है तुम्हारी ही उम्र की है तूं उसके साथ खेलना ठीक है...अब बता क्या हुआ था तेरे साथ
आसिफा : आपा में जम्मू कश्मीर के कठवा जिले से आई हूं
मैं 10जनवरी को हिमालय की वादियों में भेड़ बकरियां चरा रही थी दोपहर का खाना घर जाकर खाई फिर अम्मा से कहा मैं जंगल से घोड़े लेकर आती हूं .. फिर घोड़े तो लौट गए लेकिन में ना जा सकी ...वापस क्यों ना सकी...? आपा यह बड़ी दर्दनाक कहानी है..
मुझे एक शैतान बहला कर जंगल ले गया और जानवर बांधने वाले शेड में बांध दिया ..उस ज़ालिम शैतान ने बहुत मारा
फिर में बेहोश हो गई .. जब होश में आई तो शैतान ने मेरे साथ
बहुत बूरा काम किया आपा ..😢 फिर मुझे उस शीड से उठाकर
किसी और जगह ले गया.. वहां किसी कमरे में बंद कर दिया
में भूख प्यास से तड़प रही थी.
बाहर शैतान की आवाज आ रही थी किसी से फोन पर कहा रहा था .. मुझे एक लड़की मिली है हवस मिटानी है तो आजा
शैतान की आवाज पर दूसरे शैतान ने लब्बैक कहा और
फिर 12जनवरी को वो लोग आए और मुझे जानवरों की तरह लूटा मारा और ..... ,😢☹️ कई दिनों तक .....
एक पुलिस वाले अंकल भी थे उन लोगों में जब में आखरी सांसे ले रही थी ना तब पुलिस वाले आंकल  ने कहा इसे मारने से पहले मुझे भी अपनी हवस मिटा लेने दो
फिर उन शैतानों ने दो पत्थरों के बीच मुझे कुचल डाला इस तरह में उस नर्क से निकल कर यहां आ गई .....
निर्भया : फिक्र ना कर छुटकी उस नर्क में भी कुछ फरिश्ते है जो हमारी इस कुर्बानी को जाया नहीं जाने देंगे देखना एक दिन सब एक हो कर उनको सजा दिलवाएंगे
अब आजा मेरी गोद में सो जा में तुझे लौरी सुनाती हूं..
ला ला...लोरी... चांद की चकोरी.. ला ला लोरी😢 चांद की
च्च्चक्क्ककोरी......

13 अप्रैल 2018

सोचना क्या हुआ होगा 🙁

सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁

बच्ची थी ना वो तो
खिलौनों से ही खेलती होगी
गुड़िया लेकर सोती होगी
परियों के सपने देखती होगी

सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁

जब वो मासूम
घर से बाहर निकली होगी
मां ने कुछ खिलाया होगा
बाप बाजार से उसके लिए
कुछ लेकर आया होगा

सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁

फिर शैतान निकले होंगे
जमीन कांप उठी होगी
फरिश्ते तड़प उठे होंगे
जंगल भी दहल उठा होगा

सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁

भूख से बेहाल होगी
पानी को तरस रही होगी
मासूम काया देखकर क्या
भेड़ियों को रहम ना आया होगा

सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁

वो मासूम चिल्लाई होगी
परिंदे दुबक गए होंगे
हवाएं थम गई होगी
आसमान रोया होगा

सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁

12 अप्रैल 2018

नींद कैसे आई होगी

लूट कर मासूम की आबरू
जालिमों तुम्हे नींद कैसे आई होगी

तुमने तड़पा कर उस खिलते फूल को
अपनी बेटियों से कैसे नज़र मिलाई होगी

कसूर क्या था शायद कोई खता नहीं थी
कलेजा नहीं फटा जब वो चिल्लाई होगी

तुम इतने बेरहम कैसे बन गए ऐ दरिंदो
सोचता हूँ शायद तालीम ऐसी पाई होगी

11 अप्रैल 2018

अपने अपने नेता

वहां चलें कहां चले
किसके साथ किसके पीछे
एक काम करें
अपने अपने नेता छांट लें

तुम मुझको कोसना
में तुमको हड़काता हूं
हरे भी है भगवा भी है
अपने अपने नेता छांट लें

इसने यह किया
फिर उसने क्या किया
कुछ ना किया वो भी है यहां
अपने अपने नेता छांट लें
_____________________

1 अप्रैल 2018

अजनबी सीढ़ियां


हर रोज मंजिल की तरफ
ना जाने कितना बोझ लेकर
शाम तक नीचे उतरने के लिए
ऊपर चढ़ती है यह सीढ़ियां !

मंजिल तक पहुंचने के लिए
सब अपनी धुन में चले जा रहे
कभी मिले तो मुस्कुरा दिए
अजनबी दोस्त बनाती यह सीढ़ियां!

कभी अकेले कभी साथियों संग
इन सीढ़ियों से हजार बार गुजरे
फिर भी ना जाने क्यों
अजनबी सी लगती है  सीढ़ियां !

पीछे से आती जूतों की आवाज
मानो कह रही हो आगे बढ़ो
दबे पांव तो कभी दौड़ कर
मंजिल की ओर ले जाती सीढ़ियां!


26 मार्च 2018

वक़्त का तकाज़ा

होंट सिल दिए
आवाजें दबा दी
बहरे नहीं हो तुम
सुनते रहो बस
आंखें खुली रखना मगर
अंधे नहीं हो तुम
क्या दिखाया जा रहा है
देखो महसूस करो
बस आवाजें दबी है
गूंगे नहीं तो तुम
तुम डरे नहीं थे
डराया गया है तुमको
बहादुर बनने का ढोंग करो
कायर नहीं हो तुम
क्या लिखोगे
क़लम भी उनकी है
कागज भी उनका है
लिखो मगर
बे हुनर नहीं हो तुम
जज़्बात काबू रखो
अहसास दबा लो
वक़्त का तकाज़ा है
बस होट सिले है
गूंगे नहीं हो तुम

16 मार्च 2018

अहसास

शाम का वक्त था
घर के आंगन में
माहौल खुशनुमा था
सब बहुत खुश थे

आज कई अरसे बाद सारे भाई एक साथ
मां बाप के पास बैठे थे गुफ्तगू हो रही थी

गिले शिकवे होने लगे
आवाजें ऊंची होने लगी
पास बैठी मां घबरा गई
हाथ उठे..या अल्लाह.....
मेरे बेटे आपस में ना लड़ें ..
.

8 मार्च 2018

प्रदेश का जीवन

सुबह जल्दी उठो नौकरी पर जाओ
फिर आओ फिर कुछ खाओ और सो जाओ
फिर कल उठो फिर वही दोहराओ....असल में प्रदेश में जीवन यही है 😂

और यह सब उसी दिन शुरू हो जाता है जब घर निकलते है
यह सिलसिला तबतक जारी रहता है जब तक वापस घर नहीं पहुँच जाते
लेकिन घर से निकलने और वापस पहुँचने के बीच जो फासला
है वही तक़दीर का फैसला है
और उस दिन के बाद से ज़िंदगी की जद्दो जहद जारी रहती है
घर से निकलने वाले दिन के वो पल याद रह जाते है जब मां कहती है
बैठा कोई चीज भूल तो नहीं गए
ना..... कुछ नहीं भूला बस सबकुछ भूल गया

वो बच्चो के साथ बिताये पल वो गाँव की गलियां.... बस यादें....
दिन दो दिन महीने फिर साल और कई साल यूं ही यादों में गुजर जाते है

11 फ़र॰ 2018

बचपन फिर ना लौटेगा

वो बचपन की किलकारियां
ना कोई दुश्मन ना यारियां
सर पे ना कोई ज़िम्मेदारियाँ
वो मासूम सी होशियारियाँ,

वो बचपन फिर ना लौटेगा !

वो धूप में नंगे पाँव दौड़ना
कभी कीचड़ में लौटना
ना हारना ना कभी थकना
कभी बे वजह मुस्कुराना,

वो बचपन फिर ना लौटेगा !

गली गली बेवजह दौड़ना
खिलोने पटक कर तोड़ना
टूटे खिलोने फिर से जोड़ना
छोटी छोटी बात पर रूठना,

वो बचपन फिर ना लौटेगा !

कभी मिटटी के घर बनाना
घरों को फिर मिटटी से सजाना
कभी दिन भर माँ को सताना
फिर माँ की छाती से लिपट सो जाना,

वो बचपन फिर ना लौटेगा
हाँ !!  वो बचपन फिर ना लौटेगा

8 फ़र॰ 2018

चलो पकोड़ा बेचा जाए

लिखने पढने की ऐसी तैसी  
छोड़ छाड़  के सारी किताबें 
बाजार से बेसन खरीदा जाए  
चलो पकौड़ा बैचा जाऐ,
.
फीस फास का कोई संकट नहीं
स्कूल का भी कोई झंझट नहीं
भूल जाओ नोकरी वोकरी  
पहले एक ठेला खरीदा जाए 
चलौ पकौड़ा बेचा जा,
.
रोजगार का नया तरीका है  
कितना सुन्दर सरकारी सलीका है  
कोई मतलब नहीं डिग्री विग्री का  
फर्जी है यह सारा रगड़ा लफड़ा  
क्यों इसमें दिमाग खपाया जाए  
चलो पकोड़ा बेचा जाए,

.

28 जन॰ 2018

खैल की मंडी

मंच सजा
बोलियां लगी
ये बिका
वो बिका
उसे इसनें खरीदा
इसे उसने खरीदा
कला बिक गई
खैल बिक गया

बोली लगी
अमीरों ने लगाई
कौन बिका
कौन रह गया
गरीबों नें तालियां बजाई

किसी को ढैला ना मिला
कही पैसों की बरसात हो गई
बिकना भी अब यहां
सम्मान की बात हो गई

क्या मेरी टीम
क्या तेरी टीम
सब पैसों का खैल है
निचोड़ रहे है जो
बस गरीबों का ही तेल है
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दहशत है मोहल्ले मोहल्ले

दहशत है फैली हर शहर मोहल्ले मोहल्ले
नफरत भरी गलियां देखो इन हुक्मरानों की

धर्म की बड़ी दीवार खड़ी है चारों और यहाँ
जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की

जद में आएंगे ना जाने कितने 'चन्दन' व 'अकरम'
ज़िंदा तो ! मगर तुम पर भी हैं नजर हैवानों की

25 जन॰ 2018

पापा की परियां

कंधो पर झूलती बेटियों की किलकारियां
शरारत से जेब से सिक्के चुराती तितलियां
लेटे हुऐ बाप पर छलांग लगाती शहजादियां
टांगों पर झूले झूलती यह जन्नत की परियां

सोचता हूं बार बार सोचता हूं
बाप बेटियों को कितना प्यार करता होगा
सुबह सुबह जब काम के लिये निकलता होगा
दिल में नामालूम सी कसक तो रखता होगा
उसके जहन में ख्यालात कहर मचाते होंगे
सुबह देर तक सोई बेटी के माथे को चूमना
जल्द उठने पर उसको साथ पार्क ले जाना
कभी उदास मन से बालकनी में तन्हा छोड़ जाना

बाप कितना प्यार करता होगा आखिर कितना ?
वक्त ही कितना होता है कितनी तेज है जिंदगी
वो रुकना चाहता है लेकिन वो रुक नहीं सकता
कभी कभी तो गली के नुक्कड़ से मुड़ते हुऐ
एक नजर डालने के लिये भी वो रुक नहीं सकता
उसे जाना होता है फिर लौट आने के लिये,

22 जन॰ 2018

पकोड़ा

जिस तरह की चर्चा चल रही है
उससे लगता है जल्द ही पकोड़े बेचना भी
"राष्ट्रीय रोजगार योजना" में शामिल हो जायेगा
शायद कानून भी बन जाये आखिर मसला रोजगार का है
बेरोजगार इंजीनियर पकोड़े की डिजायन बनाऐंगे
IIT वाले पकोड़े की नई तकनीक इजाद करेंगे
स्कूलों में पकोड़ों पर बाकायदा पाठ पढाया जायेगा
पकोड़ा और पकोड़ी में भेदभाव करनें वालों के खिलाफ
सख्त कार्यवाही होगी
दुकान लगाकर पकोड़े बेचनें पर GST लगेगी,
ठेला लगाकर गली मोहल्लों में पकोड़े बेचने पर GSTकी छूट रहेगी,
बड़े पकोड़े बेचनें की अधिकार सिर्फ वैज्ञानिकों के पास होगा
डॉक्टर पर्ची में अपनी क्लिनिक के पकोड़े ही लिखेगा
कुछ रीज्यों में तो शायद पकोड़ा कार्ड भी बन जाये
हर नुक्कड़ पर पकोड़े की दुकानें नजर आयेंगी
देश GDP को एक नई राह मिलेगी
TV पर शाम को डिबेट होगी
ऐंकर मुद्दा उठायेगा की जब सरकार नें पकोड़े का साईज तय कर दिया है तो फिर मुसलमानों नें पकोड़ा बड़ा क्यों बनाया
बहस में बैठे पंडित का भी इलजाम होगा की मुसलमानों का पकोड़ा हमारे पकोड़े से बड़ा क्यों है,
सरकारी प्रवक्ता कहेगा की हमारा पकोड़ा राष्ट्रवादी है
हम तुम्हारे पकोड़े को बर्दास्त नहीं करेंगे
युवाओं में जौश होगा भांत भांत के पकोड़े नजर आयेंगे
सबसे ज्यादा नुक्सान होगा बैचारी पकोड़ी का
क्योंकी सिर्फ पकोड़े को योजना में शामिल किया है पकोड़ी को नहीं,
और फिर बनेगी "पकोड़ी सेना" तोड़ फोड़ होगी
जल्द से जल्द पकोड़ी को भी योजना में शामिल करनें के लियें आंदोलन होगा।
लेकिन बैचारा किसान यहां भी बदकिस्मत ही रहेगा
..
इसलिये रोजगार और विकास गया भाड़ में
बस "पकोडे़ खाओ पकोडे़"
_____________________________



19 जन॰ 2018

तेरा बाबा

बूढे बाबा का जब चश्मा टूटा
बोला बेटा कुछ धुंधला धुंधला है
तूं मेरा चश्मां बनवा दे,
मोबाइल में मशगूल
गर्दन मोड़े बिना में बोला
ठीक है बाबा कल बनवा दुंगा,
बेटा आज ही बनवा दे
देख सकूं हसीं दुनियां
ना रहूं कल तक शायद जिंदा,
जिद ना करो बाबा
आज थोड़ा काम है
वेसे भी बूढी आंखों से एक दिन में
अब क्या देख लोगे दुनिया,
आंखों में दो मोती चमके
लहजे में शहद मिला के
बाबा बोले बेठो बेटा
छोड़ो यह चश्मा वस्मा
बचपन का इक किस्सा सुनलो
उस दिन तेरी साईकल टूटी थी
शायद तेरी स्कूल की छुट्टी थी
तूं चीखा था चिल्लाया था
घर में तूफान मचाया था
में थका हारा काम से आया था
तूं तुतला कर बोला था
बाबा मेरी गाड़ी टूट गई
अभी दूसरी ला दो
या फिर इसको ही चला दो
मेने कहा था बेटा कल ला दुंगा
तेरी आंखों में आंसू थे
तूने जिद पकड़ ली थी
तेरी जिद के आगे में हार गया था
उसी वक्त में बाजार गया था
उस दिन जो कुछ कमाया था
उसी से तेरी साईकल ले आया था
तेरा बाबा था ना
तेरी आंखों में आंसू केसे सहता
उछल कूद को देखकर
में अपनी थकान भूल गया था
तूं जितना खुश था उस दिन
में भी उतना खुश था
आखिर "तेरा बाबा था ना"

13 जन॰ 2018

मीडिया

दिन भर की मेहनत और भाग दौड़ के बाद
गनीमत है की आप शाम को सही सलामत घर पहुँच गए होंगे

अब देश के हालात जानने के लिए टीवी खोल लीजिये 

चेंनल नंबर 1 
यह चैनल आपको दिखा रहा है की पाकिस्तान और चीन को कैसे सबक सिखाया जा रहा है,
और यहाँ बगदादी चारों तरफ से घिर चूका है

क्या हुआ  ? संतुष्ट नहीं हुए तो चलिए चैनल बदल लीजिये

चैनल नंबर 2
यहाँ आपको अमेरिका और किम जोंग के सारे प्लान बताये जा रहे है
जरा ध्यान से सुनते रहिये फ्यूचर में यह प्लान शायद आपके काम आएंगे

अब भी आपको अगर सुकून नहीं है तो अगले चैनल पर चलिए

चैनल नंबर 3
यहाँ पर हिन्दू मुस्लिम के अधिकारों की बहस हो रही
तलाक और गाय का यहां पर कब्जा है  मुल्लां और पंडित अपने अपने धर्म की ठेकेदारी कर रहे है,

क्या सोच रहे हो ? देश के हालत जानने के लिए टीवी खोला था आगे चलिए बताते है

चैनल नंबर 4
यहाँ पर अदालत लगी है ऐंकर ही वकील है और ऐंकर ही जज है
ध्यान से सुनते रहिये कुछ ही देर में यहाँ पर किसी न किसी को देशद्रोही ठहरा दिया जायेगा

क्या हुआ गुस्सा आ रहा है ?
गुस्से को काबू में रखिये जनाब वरना ऐंकर टीवी से बहार निकल आएगा

देश में क्या चल रहा है यह तो अब आप जान ही चुके होंगे
टीवी बंद कर दीजिये और सुकून से सो जाईये
कल फिर आपको दो जून  की रोटी की तलाश में निकलना होगा

8 जन॰ 2018

बूढ़ा इंतज़ार

उस टीन के छप्पर मैं
पथराई सी दो बूढी आंखें

एकटक नजरें सामने
दरवाजे को देख रही थी

चेहरे की चमक बता रही है
शायद यादों मैं खोई है

एक छोटा बिस्तर कोने में
सलीके से सजाया था

रहा नहीं गया पूछ ही लिया
अम्मा कहाँ खोई हो

थरथराते होटों से निकला
आज शायद मेरा गुल्लू आएगा

कई साल पहले कमाने गया था
बोला था "माई'' जल्द लौटूंगा

आह : .कलेजा चीर गए वो शब्द
जो उन बूढ़े होंठों से निकले।