कल तक थी इल्तिज़ा तूं रहम कर
मगर तेरा लहज़ा है की मैं डर गया हूं..!!
मगर तेरा लहज़ा है की मैं डर गया हूं..!!
अदावतें पुरानी है यह चलती रहेगी
बस जुल्मों के दर्द से बिखर गया हूं..!!
बस जुल्मों के दर्द से बिखर गया हूं..!!
चारों तरफ बस एक ही शोर है बरपा
अब कैसे में अचानक से सुधर गया हूं..!!
अब कैसे में अचानक से सुधर गया हूं..!!
बुरा ही सही मगर रहूंगा तेरा हमसाया
मैं भी किसी ज़माने में तेरे घर गया हूं ..!!
मैं भी किसी ज़माने में तेरे घर गया हूं ..!!