जब से देश में नोटबंदी हो गई
सियासत और भी गंदी हो गई
हल्की हल्की सांसे ले रही है इंसानियत
सुना है मजदूर की आवाज मंदी हो गई
लंम्बी लंम्बी यह जो कातर कतारें है
बेबस चेहरे देख आह भी ठंडी हो गई
चीखकर मांग रहे हैं हिसाब गरीब का
पसीने की कमाई भी अब रद्दी हो गई
कोसती थी एक दूसरे को हर आंख
सुना है नेताऔं मे रजामंदी हो गई
क्यों ? दिखता नहीं दर्द रहनुमाओं को
लाचार को हराने सियायत अंधी हो गई
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