28 जन॰ 2018

दहशत है मोहल्ले मोहल्ले

दहशत है फैली हर शहर मोहल्ले मोहल्ले
नफरत भरी गलियां देखो इन हुक्मरानों की

धर्म की बड़ी दीवार खड़ी है चारों और यहाँ
जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की

जद में आएंगे ना जाने कितने 'चन्दन' व 'अकरम'
ज़िंदा तो ! मगर तुम पर भी हैं नजर हैवानों की

1 टिप्पणी:

  1. यह समय का सच है । बेहद डरावने समय में जी रहे हैं हम । सच बयां करती रचना । सादर

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