दहशत है फैली हर शहर मोहल्ले मोहल्ले
नफरत भरी गलियां देखो इन हुक्मरानों की
धर्म की बड़ी दीवार खड़ी है चारों और यहाँ
जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की
जद में आएंगे ना जाने कितने 'चन्दन' व 'अकरम'
ज़िंदा तो ! मगर तुम पर भी हैं नजर हैवानों की
नफरत भरी गलियां देखो इन हुक्मरानों की
धर्म की बड़ी दीवार खड़ी है चारों और यहाँ
जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की
जद में आएंगे ना जाने कितने 'चन्दन' व 'अकरम'
ज़िंदा तो ! मगर तुम पर भी हैं नजर हैवानों की
यह समय का सच है । बेहद डरावने समय में जी रहे हैं हम । सच बयां करती रचना । सादर
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