1 अप्रैल 2018

अजनबी सीढ़ियां


हर रोज मंजिल की तरफ
ना जाने कितना बोझ लेकर
शाम तक नीचे उतरने के लिए
ऊपर चढ़ती है यह सीढ़ियां !

मंजिल तक पहुंचने के लिए
सब अपनी धुन में चले जा रहे
कभी मिले तो मुस्कुरा दिए
अजनबी दोस्त बनाती यह सीढ़ियां!

कभी अकेले कभी साथियों संग
इन सीढ़ियों से हजार बार गुजरे
फिर भी ना जाने क्यों
अजनबी सी लगती है  सीढ़ियां !

पीछे से आती जूतों की आवाज
मानो कह रही हो आगे बढ़ो
दबे पांव तो कभी दौड़ कर
मंजिल की ओर ले जाती सीढ़ियां!


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