हर रोज मंजिल की तरफ
ना जाने कितना बोझ लेकर
शाम तक नीचे उतरने के लिए
ऊपर चढ़ती है यह सीढ़ियां !
ना जाने कितना बोझ लेकर
शाम तक नीचे उतरने के लिए
ऊपर चढ़ती है यह सीढ़ियां !
मंजिल तक पहुंचने के लिए
सब अपनी धुन में चले जा रहे
कभी मिले तो मुस्कुरा दिए
अजनबी दोस्त बनाती यह सीढ़ियां!
सब अपनी धुन में चले जा रहे
कभी मिले तो मुस्कुरा दिए
अजनबी दोस्त बनाती यह सीढ़ियां!
कभी अकेले कभी साथियों संग
इन सीढ़ियों से हजार बार गुजरे
फिर भी ना जाने क्यों
अजनबी सी लगती है सीढ़ियां !
इन सीढ़ियों से हजार बार गुजरे
फिर भी ना जाने क्यों
अजनबी सी लगती है सीढ़ियां !
पीछे से आती जूतों की आवाज
मानो कह रही हो आगे बढ़ो
दबे पांव तो कभी दौड़ कर
मंजिल की ओर ले जाती सीढ़ियां!
मानो कह रही हो आगे बढ़ो
दबे पांव तो कभी दौड़ कर
मंजिल की ओर ले जाती सीढ़ियां!
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