वो कश्मीर की वादियां
वो लहूलुहान परिंदे
वो खंडहर से घरौंदे
सब एक सुर में बोल पड़े
कुछ पंछी पराए है
कुछ अपने हमसाये हैं
ख़ामोश लब खोल पड़े
सब एक सुर में बोल पड़े
चिड़ियों के पर ना काटो
मजहब में इनको ना बांटो
उड़ने दो इनको आसमान में
फेलाने दो अमन हिंदुस्तान में
सब एक सुर में बोल पड़े
वो लहूलुहान परिंदे
वो खंडहर से घरौंदे
सब एक सुर में बोल पड़े
कुछ पंछी पराए है
कुछ अपने हमसाये हैं
ख़ामोश लब खोल पड़े
सब एक सुर में बोल पड़े
चिड़ियों के पर ना काटो
मजहब में इनको ना बांटो
उड़ने दो इनको आसमान में
फेलाने दो अमन हिंदुस्तान में
सब एक सुर में बोल पड़े
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