यह सर्द रातें
यह ठंडा घना कोहरा
कभी कम्बल से निकल
कुछ दूर चल
गलियों में झांक
चौराहे के उस पार
पुल के नीचे
कुछ इंसान रहते हैं
तुझे क्या पता
तुझे खबर नहीं
मजबूरी क्या है
जब तक ना पिघले
सीने में जमी बर्फ
तब तक शायद तुझे
अहसास ना होगा
दिसंबर की रातों का
...
ग़रीब की सर्दी (जमील नामा 66-18)
यह ठंडा घना कोहरा
कभी कम्बल से निकल
कुछ दूर चल
गलियों में झांक
चौराहे के उस पार
पुल के नीचे
कुछ इंसान रहते हैं
तुझे क्या पता
तुझे खबर नहीं
मजबूरी क्या है
जब तक ना पिघले
सीने में जमी बर्फ
तब तक शायद तुझे
अहसास ना होगा
दिसंबर की रातों का
...
ग़रीब की सर्दी (जमील नामा 66-18)
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