15 सित॰ 2019

एक अजीब सा डर है


अजीब सा डर है
हर नुक्कड़ पर
पुलिस का पहरा है
भीड़ का सैलाब 
चारो ओर  फिर भी ना जाने क्यों
एक अजीब सा डर है
कौन कहां से
आयेगा
और पूछेगा कौन हो तुम
क्या जवाब दूंगा
मुस्लिम हूं  दलित हूं  
कोन हूं
आखिर क्या बताऊं
अपनी पहचान
कैसे बताऊं कौन हूं 
एक अजीब सा डर है
क्या कहूंगा 
हिन्दुस्तानी हूं
नहीं नहीं 
वो नहीं समझेंगे
फिर क्या कहूं
इंसान हूं ?
लेकिन वो तो भेड़िए है
इंसान होते तो
पूछते ही नहीं
फिर क्या बताऊं
बस  एक अजीब सा डर है
आखिर क्यों है 
क्या कोई बोलेगा ?
क्या इंसाफ नहीं मिलेगा ?
नहीं नहीं ..
इंसाफ पर तो भरोसा है
लेकिन अगर
भीड़ ने मार दिया तो
फिर क्या करूंगा इंसाफ का
भीड़ है
उसी भीड़ में
मैं भी शामिल हूं
लेकिन फिर भी
एक अजीब सा डर है

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