अजीब सा डर है
हर नुक्कड़ पर
पुलिस का पहरा है
भीड़ का सैलाब
हर नुक्कड़ पर
पुलिस का पहरा है
भीड़ का सैलाब
चारो ओर
फिर भी ना जाने क्यों
एक अजीब सा डर है
एक अजीब सा डर है
कौन कहां से
आयेगा
और पूछेगा कौन हो तुम
क्या जवाब दूंगा
मुस्लिम हूं दलित हूं
कोन हूं
आखिर क्या बताऊं
अपनी पहचान
कैसे बताऊं कौन हूं
एक अजीब सा डर है
आयेगा
और पूछेगा कौन हो तुम
क्या जवाब दूंगा
मुस्लिम हूं दलित हूं
कोन हूं
आखिर क्या बताऊं
अपनी पहचान
कैसे बताऊं कौन हूं
एक अजीब सा डर है
क्या कहूंगा
हिन्दुस्तानी हूं
नहीं नहीं
वो नहीं समझेंगे
फिर क्या कहूं
इंसान हूं ?
लेकिन वो तो भेड़िए है
इंसान होते तो
पूछते ही नहीं
फिर क्या बताऊं
फिर क्या कहूं
इंसान हूं ?
लेकिन वो तो भेड़िए है
इंसान होते तो
पूछते ही नहीं
फिर क्या बताऊं
बस
एक अजीब सा डर है
आखिर क्यों है
क्या कोई बोलेगा ?
क्या इंसाफ नहीं मिलेगा ?
नहीं नहीं ..
इंसाफ पर तो भरोसा है
लेकिन अगर
भीड़ ने मार दिया तो
फिर क्या करूंगा इंसाफ का
भीड़ है
उसी भीड़ में
मैं भी शामिल हूं
लेकिन फिर भी
एक अजीब सा डर है
क्या कोई बोलेगा ?
क्या इंसाफ नहीं मिलेगा ?
नहीं नहीं ..
इंसाफ पर तो भरोसा है
लेकिन अगर
भीड़ ने मार दिया तो
फिर क्या करूंगा इंसाफ का
भीड़ है
उसी भीड़ में
मैं भी शामिल हूं
लेकिन फिर भी
एक अजीब सा डर है
बेहतरीन रचना ,डर जीवन को जकड़े हुए है
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