सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
बच्ची थी ना वो तो
खिलौनों से ही खेलती होगी
गुड़िया लेकर सोती होगी
परियों के सपने देखती होगी
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
जब वो मासूम
घर से बाहर निकली होगी
मां ने कुछ खिलाया होगा
बाप बाजार से उसके लिए
कुछ लेकर आया होगा
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
फिर शैतान निकले होंगे
जमीन कांप उठी होगी
फरिश्ते तड़प उठे होंगे
जंगल भी दहल उठा होगा
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
भूख से बेहाल होगी
पानी को तरस रही होगी
मासूम काया देखकर क्या
भेड़ियों को रहम ना आया होगा
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
वो मासूम चिल्लाई होगी
परिंदे दुबक गए होंगे
हवाएं थम गई होगी
आसमान रोया होगा
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
बच्ची थी ना वो तो
खिलौनों से ही खेलती होगी
गुड़िया लेकर सोती होगी
परियों के सपने देखती होगी
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
जब वो मासूम
घर से बाहर निकली होगी
मां ने कुछ खिलाया होगा
बाप बाजार से उसके लिए
कुछ लेकर आया होगा
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
फिर शैतान निकले होंगे
जमीन कांप उठी होगी
फरिश्ते तड़प उठे होंगे
जंगल भी दहल उठा होगा
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
भूख से बेहाल होगी
पानी को तरस रही होगी
मासूम काया देखकर क्या
भेड़ियों को रहम ना आया होगा
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
वो मासूम चिल्लाई होगी
परिंदे दुबक गए होंगे
हवाएं थम गई होगी
आसमान रोया होगा
सोचना उस दिन क्या हुआ होगा 🙁
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
शुक्रिया आभार रहेगा
जवाब देंहटाएंप्रिय बंधू देशवाली -- आपकी रचना परसों मेरे गूगल प्लस पर मौजूद थी पढ़ी तो आँखें नम हो आई | कितनी संवेदनशीलता से आपने उस मनहूस दिन की कहानी ब्यान की | सचमुच वे पिशाच ही थे नर कहने योग्य नहीं जिन्हें मासूमि पर दया नहीं आती | एक नारी से पैदा हो दूसरी नारी के शिशु रूप का मर्दन करते उन्हें लज्जा नहीं आई | और राजनीति का वीभत्स चेहरा देखो हिन्दू मुस्लिम में उलझ कर मासूम की अस्मत का मोल लगा रही है | आपकी प्रखर लेखनी का प्रवाह बना रहे | समाज में झझकोरने वाले कवि बहुत कम हैं | मर्मस्पर्शी रचनाओं के लिए आपको शुभ कामनाएं देती हूँ | सस्नेह |
जवाब देंहटाएंमन भील गया अंतर तक ..।
जवाब देंहटाएंइंसान कब तक जानवर रहेगा ... समझ से परे है ...