इस बार यह परदेस का आखरी सफ़र है..
पहली बार जब आया था कुछ ऐसा ही इरादा था कि
बस एक बार जाकर कुछ कमा लूं फिर इधर ही कोई काम करूंगा, तब वो कुछ जवान था उसकी कमाने की उम्र थी
छुट्टी गया घर की मरम्मत करवाई हाथ तंग हुए वापस लौट आया....
इस बार दो साल का इरादा करके आया था
एक साल ही गुजरा था कि बहन भाई की शादी की खबर आई
फिर हाथ तंग हुआ .. इरादा लम्बा हो गया
वक्त गुजरता गया इरादा बदलता गया
लेकिन अब बहुत हुआ अब वही कुछ करेंगे यह सोच कर छुट्टी गया...मकान बनाकर सोचा अब फारिग हूं लेकिन हाथ तंग है
फिर लौट आया आखिरी इरादे के साथ...
इस बार तो सबको बता दिया कि
यह आखरी सफ़र है विदेश का बस दो साल गुजारनी है घर बन गए बहन भाई की शादियां हो गई..अब बहुत है वापस नहीं आना दो साल बाद यही सोच कर छुट्टी गया..
वक्त गुजरता गया जरूरतें पूरी हुई नहीं इरादे लंबे होते गए
लेकिन इसबार पक्का सोच लिया था ना आने का
कुछ दिन ही गुजरे थे कि ख्याल आया बच्चों को पढ़ाना बहुत जरूरी है. पढ़ लिखकर कोई काम करले ताकी मेरी तरह भटकते ना फिरे .. एक चक्कर और लगा आता हूं
आखरी चक्कर के चक्कर में कई साल बीत गए ..
लौट आया आखरी इरादे के साथ
अब थक चुका था हड्डियां जवाब देने लगी है बच्चे भी अच्छे खासे पढ़ चुके है अब वो भी कुछ कर लेंगे अब आखरी है
दो साल बाद फिर घर लौटा ना आने के लिए
अब वो कमजोर हो चुका है
सुकून से ज़िंदगी बिताना चाहता है बहुत कमा लिया ज़िंदगी में
हाथ कुछ तंग है तो क्या हुआ यहीं कुछ गुजारा कर लेंगे
शाम को बीवी ने कहा की अगले साल बेटी की शादी कर देंगे में रिश्ता देख रही हूं...
आह: यह क्यों भूल गया कि उसे कमाना होगा आखरी सांस तक कमाना होगा ...
और वो बार फिर लौट गया आखरी इरादे के साथ ..
यही ज़िंदगी है ....
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परदेस का आखरी सफ़र (जमील नामा 4/19)
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