कच्चे घरों में पक्के रिश्ते होते थे
तब यह गांव वाले कितने मीठे होते थे ..
अब मोटी दीवारें हैं घर घर के बीच में
पहले तो हर आंगन रिश्ते नाते होते थे
अब कौन सुनाए चबूतरे पर कहानियां ,
वहां पहले तो कुछ बूढ़े बाबे होते थे
सिर्फ यादें है उस नुक्कड़ की "जमील"
जिस नुक्कड़ पर चाय के ढाबे होते थे
वो डमरू वाला आता था खेल दिखाने
जब मोबाइल जैसे ना कोई तमाशे होते थे
फुर्सत मिले तो जीने की कोशिश करना
वो पल जब अपनों संग ठहाके होते थे
.
तब यह गांव वाले कितने मीठे होते थे ..
अब मोटी दीवारें हैं घर घर के बीच में
पहले तो हर आंगन रिश्ते नाते होते थे
अब कौन सुनाए चबूतरे पर कहानियां ,
वहां पहले तो कुछ बूढ़े बाबे होते थे
सिर्फ यादें है उस नुक्कड़ की "जमील"
जिस नुक्कड़ पर चाय के ढाबे होते थे
वो डमरू वाला आता था खेल दिखाने
जब मोबाइल जैसे ना कोई तमाशे होते थे
फुर्सत मिले तो जीने की कोशिश करना
वो पल जब अपनों संग ठहाके होते थे
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