11 जून 2018

गांव के बूढ़े बाबे

कच्चे घरों में पक्के रिश्ते होते थे
तब यह गांव वाले कितने मीठे होते थे ..

अब मोटी दीवारें हैं घर घर के बीच में
पहले तो हर आंगन रिश्ते नाते होते थे

अब कौन सुनाए चबूतरे पर कहानियां ,
वहां पहले तो कुछ बूढ़े बाबे होते थे

सिर्फ यादें है उस नुक्कड़ की "जमील"
जिस नुक्कड़ पर चाय के ढाबे होते थे

वो डमरू वाला आता था खेल दिखाने
जब मोबाइल जैसे ना कोई तमाशे होते थे 

फुर्सत मिले तो जीने की कोशिश करना
वो पल जब अपनों संग ठहाके होते थे
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