ऑफिस से घर तक आधे घंटे का सफर 😋😍
शाम ढलने को है काम खत्म करके घर जा रहा हूं
सड़क पर रेंगती गाडियां हर कोई मंज़िल तक पहुंचने की चाहत में दौड़े चला जा रहा है.....
शाम ढलने को है काम खत्म करके घर जा रहा हूं
सड़क पर रेंगती गाडियां हर कोई मंज़िल तक पहुंचने की चाहत में दौड़े चला जा रहा है.....
आखिर
बनाने वाले ने बल खाती यह काली सड़क क्यों बनाई
रंगीन बनाकर इस सड़क पर सितारे भी सजा सकता था
फिर सोचता हूं .
शायद बनाने वाले को काली जुल्फें पसंद थी वो उसमे खो जाना चाहता था.लेकिन उसे पा ना सका तो उस राह पर काली लकीरें उकेर दी...
आखिर उसे काली जुल्फों में क्यों दिलचस्पी थी
शायद वो उस काले दौर से गुजर चुका था जिस दौर में मोहब्बत पर पहरा बिठा कर आशिकों को दीवारों में चिनवा दिया जाता था...
लेकिन फिर भी मोहब्बत तो मोहब्बत होती है
वो दीवार को तोड़ कर निकल जाती थी उसे दरवाजों की दरकार नहीं थी वो खिड़की से झांक कर इश्क का आशियाना ढूंढ लेती थी...
वहीं खिड़की जो हर घर में हवाओं को खींच लाती है
जहां अपने है, सपने हैं, सीखने को पापा का तजुर्बा है,
पढ़ने को मां एक पूरी किताब है, सबसे जरूरी है वो
पलंग के पास लगा चार्जर...
चार्जर ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है
इसी में तो यह जहान समाया हुआ है दुनियां मुट्ठी में है
अनजानी खुशियां, बेमतलब के गम, अजनबी से दोस्त,
सब इसी चार्जर के ही सहारे है सोशल मीडिया भी तो इसी
का हिस्सा है...
सोशल मीडिया से दुनियां को आपके करीब लाकर खडा कर दिया यहां जो सच है वहीं झूठ है और झूठ भी सच है
नज़रें झुका कर देख सकते है जहां तक नजर जाती है
गर्दन उठाकर आसमान ताकने की जरूरत नहीं मोबाइल में घुसकर देख सकते है, पहाड़ों पर गिरता बर्फ, सहराओं में उड़ती धूल ,अंबर छूती इमारतें, और यह बल खाती काली सड़क पर दौड़ती गाडियां... जो इस वक़्त में देख रहा हूं....
.....
काली सड़क ( जमील नामा 3/19)
बनाने वाले ने बल खाती यह काली सड़क क्यों बनाई
रंगीन बनाकर इस सड़क पर सितारे भी सजा सकता था
फिर सोचता हूं .
शायद बनाने वाले को काली जुल्फें पसंद थी वो उसमे खो जाना चाहता था.लेकिन उसे पा ना सका तो उस राह पर काली लकीरें उकेर दी...
आखिर उसे काली जुल्फों में क्यों दिलचस्पी थी
शायद वो उस काले दौर से गुजर चुका था जिस दौर में मोहब्बत पर पहरा बिठा कर आशिकों को दीवारों में चिनवा दिया जाता था...
लेकिन फिर भी मोहब्बत तो मोहब्बत होती है
वो दीवार को तोड़ कर निकल जाती थी उसे दरवाजों की दरकार नहीं थी वो खिड़की से झांक कर इश्क का आशियाना ढूंढ लेती थी...
वहीं खिड़की जो हर घर में हवाओं को खींच लाती है
जहां अपने है, सपने हैं, सीखने को पापा का तजुर्बा है,
पढ़ने को मां एक पूरी किताब है, सबसे जरूरी है वो
पलंग के पास लगा चार्जर...
चार्जर ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है
इसी में तो यह जहान समाया हुआ है दुनियां मुट्ठी में है
अनजानी खुशियां, बेमतलब के गम, अजनबी से दोस्त,
सब इसी चार्जर के ही सहारे है सोशल मीडिया भी तो इसी
का हिस्सा है...
सोशल मीडिया से दुनियां को आपके करीब लाकर खडा कर दिया यहां जो सच है वहीं झूठ है और झूठ भी सच है
नज़रें झुका कर देख सकते है जहां तक नजर जाती है
गर्दन उठाकर आसमान ताकने की जरूरत नहीं मोबाइल में घुसकर देख सकते है, पहाड़ों पर गिरता बर्फ, सहराओं में उड़ती धूल ,अंबर छूती इमारतें, और यह बल खाती काली सड़क पर दौड़ती गाडियां... जो इस वक़्त में देख रहा हूं....
.....
काली सड़क ( जमील नामा 3/19)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें