शाम को तन्हा बैठकर
ख्यालों में डूब कर
यादों में खो कर
में अक्सर खुद से कहता हूं
चलो चाय पीते है !!
ज़िन्दगी की जद्दोजहद से
जहन रुक जाता है
बदन थक जाता है
तब में अक्सर खुद से कहता हूं
चलो चाय पीते है !!
जब यादें उरूज पर हो
ख़्वाब खुरूज पर हो
नफ्स को सुकूं तो मिले
में अक्सर खुद से कहता हूं
चलो चाय पीते है !!
चुस्कियों की तलब है
कैसी बनेगी, कैसे बनेगी
जैसे भी बनेगी..
में अक्सर खुद से कहता हूं
चलो चाय पीते है !!
_____
चाय पीते है (जमील नामा 58/18)
ख्यालों में डूब कर
यादों में खो कर
में अक्सर खुद से कहता हूं
चलो चाय पीते है !!
ज़िन्दगी की जद्दोजहद से
जहन रुक जाता है
बदन थक जाता है
तब में अक्सर खुद से कहता हूं
चलो चाय पीते है !!
जब यादें उरूज पर हो
ख़्वाब खुरूज पर हो
नफ्स को सुकूं तो मिले
में अक्सर खुद से कहता हूं
चलो चाय पीते है !!
चुस्कियों की तलब है
कैसी बनेगी, कैसे बनेगी
जैसे भी बनेगी..
में अक्सर खुद से कहता हूं
चलो चाय पीते है !!
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चाय पीते है (जमील नामा 58/18)
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