28 फ़र॰ 2019

हमसाया

कल तक थी इल्तिज़ा तूं रहम कर
मगर तेरा लहज़ा है की मैं डर गया हूं..!!
 
अदावतें पुरानी है यह चलती रहेगी 
बस जुल्मों के दर्द से बिखर गया हूं..!!
 
चारों तरफ बस एक ही शोर है बरपा 
अब कैसे में अचानक से सुधर गया हूं..!!
 
बुरा ही सही मगर रहूंगा तेरा हमसाया
मैं भी किसी ज़माने में तेरे घर गया हूं ..!!
 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप बहुत ही अच्छा लिखते है ,में चाहती हूँ आपको सभी पढ़े ,मैं आपको सबसे जोड़ने की कोशिश करूँगी ,साथ ही आपसे कुछ सीखना भी चाहूँगी ,

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  2. अदावतें पुरानी है यह चलती रहेगी
    बस जुल्मों के दर्द से बिखर गया हूं..!!
    बहुत खूब

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